Kiran Mishra

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लेखनी कहानी -01-Jul-2023

नर हो न निराश करो मन को-

इस निर्मल मन में तेज भरो
जग शोभित तुम कर्म करो ‌
माना कठिन डगर नौका का
काम क्रोध मद लोभ तजो
नर हो न निराश करो -------

अपने लिए सभी जीते हैं
राष्ट्र धर्म के कम चीते हैं
ऐसे न हृदय पाषाण बनो
ना खारा जल बन वार करो
नर हो न निराश--------

मौत ही शाश्वत सत्य यहाँ
कोई न यहाँ पर अमर हुआ
तुम जीवन अपना और मढ़ो
पुण्य कर्म का नव तेज भरो
नर हो न निराश---------

कहीं मानवता छूटे नहीं
मन को अंधेरा लूटे नहीं
एक दीप नि:स्वार्थ जलाओ
मजबूरों की लाठी बन जाओ
नर हो न निराश----------

किरण मिश्रा# निधि#
आधे-अधूरे मिसरे/प्रसिद्ध पंक्तियाँ

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सुन्दर सृजन

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